उर्वशी अप्सरा साधना संपूर्ण जानकारी
प्राचीन काल से ही भारतीय साधना पद्धति में सौन्दर्य की साधना करना
भी एक आवश्यक गुण माना गया है। सौन्दर्य शब्द को लेकर के समाज में आज
जो भी धारणा हो , उसके विषय में तो कुछ भी नहीं कहा जा सकता, किंतु प्राचीन
काल में ऋषियों के मन में सौन्दर्य को लेकर के न तो कोई था, न उनके
मन में कोई ऐसी धारणा थी कि सौन्दर्य की उपासना अपने आपमें कोई अश्लील
धारणा है। यही कारण है, कि प्राचीन ग्रंथों में सौन्दर्य का मूर्त रूप अप्सरा को
मान कर प्रकारान्तर से सौन्दर्य की ही उपासना करने का प्रयास किया है, क्योंकि
सौन्दर्य नारी के माध्यम से अपने सर्वोत्कृष्ट रूप में स्पष्ट हो सकता है . . .
और संसार की तीन अद्वितीय सुंदरियां मानी गई हैं, जिनके नाम उर्वशी, रम्भा, और
मेनका हैं , इनमें भी उर्वशी का नाम सर्वोपरि है। ये सुंदर स्त्रियां देवताओं के राजा
इन्द्र की सभा में अद्वितीय नृत्य और सूर्य के समान प्रखर सौन्दर्य रश्मियों से सबको
अभिभूत करती रहती हैं।
उर्वशी के बारे में ग्रंथों में कहा गया है, कि वह चिरयौवना है, हजारों
वर्ष बीतने पर भी वह 16 वर्ष की उम्र की युवती के समान अल्हड़ मदमस्त और
यौवन रस से परिपूर्ण रहती है। सारा शरीर एक अद्वितीय सुन्दरता से परिपूर्ण रहता
है, जिसको देखकर व्यक्ति तो क्या, देवता भी ठगे रह जाते हैं। विश्वामित्र संहिता
के अनुसार गोरा अण्डाकार चेहरा, लम्बे और एड़ियों को छूते हुए घने श्यामल
केश, जैसे कोई बादलों की घटा उमड़ आई हो, गोरा रंग ऐसा, कि जैसे स्वच्छ
दूध में केसर मिला दी हो, बड़ी-बड़ी खंजन पक्षी की तरह आंखें जो हर क्षण
गहन जिज्ञासा लिए हुए इधर-उधर देखती हों , छोटी चिबुक, सुंदर और गुलाबी
होंठ, आकर्षक चेहरा और अद्वितीय आभा से युक्त शरीर . . . सब मिलाकर एक
ऐसा सौन्दर्य जो उंगली लगने पर मैला हो जाए। ऐसी ही सौन्दर्य की सम्राज्ञी उर्वशी
संसार की अद्ठितीय सौन्दर्य सम्राज्ञी है, जो अपने यौवन व सौन्दर्य के माध्यम से
पूरे संसार को मोहित किए हुए है।
अप्सरा साधना की शुरुवात कैसे हुई
विश्वामित्र ने जब यह सुना कि उर्वशी इन्द्र के दरबार की उज्जवल
सौन्दर्यमयी नृत्यांगना है जिसके नृत्य से मनुष्य तो क्या बहता हुआ पानी भी ठिठक कर
रुक ज़ाता है, तो उन्होंने आज्ञा दी कि उर्वशी मेरे आश्रम में भी नृत्य करे।
विश्वामित्र ने अपना संदेश इन्द्र तक पहुंचा दिया और इन्द्र ने हाथों- हाथ मना
कर कहला दिया कि यह किसी भी प्रकार से सम्भव नहीं है।
विश्वामित्र तो हठी योगी रहे हैं, उन्होंने मंत्र बल से उर्वशी को अपने आश्रम
में बुलाया और कहा - तुम्हें ठीक वैसा ही नृत्य मेरे शिष्यों के सामने इस आश्रम में
करना है, जैसा इन्द्र की सभा में तुम करती हो।
उर्वशी ने यौवन के नशे में चूर नृत्य करने से मना कंर दिया और इठलाती हुई पुन:
इन्द्रलोक चली गई। ।
विश्वामित्र तिलमिला कर रह गए। उन्होंने उसी क्षण प्रतिज्ञा की कि मैं
सर्वथा नये तंत्र की रचना करूंगा और तंत्र बल से इसे अपने आश्रम में बुलाऊंगा,
एक बार नहीं जब भी चाहे नृत्य करवाऊंगा और इसी जिद्द और क्रोध का परिणाम
हुआ 'उर्वशी तंत्र ' |
अप्सरा साधना किस रूप में करे
किसी भी अप्सरा की साधना चार रूपों में की जा सकती है।
मां, बहन, पत्नी और प्रेमिका के रूप में
साधना सम्पन्न करना श्रेष्ठ माना गया है।
विश्वामित्र ने प्रेमिका रूप से तंत्र रचना की और इसी तंत्र के माध्यम से उर्वशी को अपने आश्रम
में आने के लिए बाध्य किया और उसे अद्वितीय नृत्य करना पड़ा।
अप्सरा साधना के लाभ
उर्वशी को सिद्ध
कर निम्न लाभ प्राप्त किए जाते हैं-
जब भी चाहे उर्वशी को प्रत्यक्ष बुलाए और उसका नृत्य देखे ।
उर्वशी का प्रेमिका रूप में उपयोग करे, उसके साथ रमण करे।
उर्वशी के माध्यम से मनोरंजन करें।
उर्वशी के द्वारा अतुलनीय धन, बैभव प्राप्त करे |
उर्वशी के द्वारा चिरयौवन प्राप्त कर जीवन का पूर्ण आनन्द उपभोग करे।
उर्वशी को सिद्ध कर उन पदार्थों और भोगों को प्राप्त करे जो उसके मन की
आकांक्षा होती है।
विश्वामित्र के बाद और कौन कौन उर्वशी साधना किये
विश्वामित्र के बाद उनके शिष्य भूरिश्रवा , चिन्मय, देवसुत , गन्धर , और
यहां तक कि देवी विश्रवा और रलप्रभा ने भी उर्वशी अप्सरा को सिद्ध कर जीवन के सम्पूर्ण
भोगों का भोग किया | गोरखनाथ ने भी इस साधना के माध्यम से चिरयौवन प्राप्त
किया और गोरक्षपुर में उन्होंने हजारों शिष्ष्यों के सामने सदेह उर्वशी को बुलाकर
अद्वितीय नृत्य सम्पन्न करवाया । इतिहास साक्षी है कि स्वामी शंकराचार्य ने इसी
साधना को सम्पन्न कर अपने शिष्य पद्मपाद को अतुलनीय वैभव का स्वामी बना
दिया, यहीं नहीं अपितु मंडन मिश्र से शास्त्रार्थ के दिनों में शंकराचार्य ने उर्वशी
को तंत्र के माध्यम से उसे अपने सामने बुलाकर उससे काम कला की वे बारीकियां
समझा जो सन्याशी होने की वजह से उनके लिए असंभव थी, इसी साधना के
बल पर आज से सौ साल पहले स्वामी विशुद्धानंद जी ने बनारस में नवमुण्डी
आश्रम में अभिनव नृत्य कराकर अंग्रेजों को आश्चर्यचकित कर दिया था, और
उस समय के तत्कालीन कलेक्टर ब्लासिम ने तो कहा था, कि मैंने अपनी जिन्दगी
में ऐसी सुंदरी नहीं देखी, वह अचानक आई और जो नृत्य उसने किया वह
आश्चर्यचकित करने वाला था।
उर्वशी-साधना कोई भी साधक सम्पन्न कर सकता है। शास्त्रों के अनुसार
भी उर्वशी की साधना पत्नी या प्रेमिका के रूप में ही सम्पन्न करनी चाहिए।
साधना विधि
यह साधना 49 दिनों की है, किसी भी पूर्णमासी की रात्रि से यह साधना
प्रारम्भ की जाती है, घर के किसी कोने में सफेद आसन बिछाकर उत्तर की तरफ मुँह
कर बैठ जांए, सामने घी का अखण्ड दीपक प्रज्ज्वलित करे और स्वयं पानी में गुलाब
का थोड़ा सा इत्र मिलाकर स्नान कर स्वच्छ सफेद वस्त्र धारण कर आसन पर बैठ
जांए, और सामने उर्वशी यंत्र और चित्र रखकर स्फटिक की माला से मंत्र जप करे।
मंत्र
॥॥ ॐ श्रीं क्लीं उर्वशी अप्सराय आगच्छागच्छ स्वाहा ।।
आप प्रत्येक दिन २१ माला जप कर सकते है
मंत्र जप समाप्ति के बाद उसी स्थान पर सो जाएं।
इन 49 दिनों में वह न तो किसी से बात करे, और न कमरे से बाहर जाए,
केवल शौचादि क्रिया कंरने के लिए बाहर जा सकता है। सातवें दिन निश्चय ही
घुंघरुओं की मधुर आबाज सुनाई देती है, मगर साधक को चाहिए कि वह अविचलित
भाव से मंत्र जप करता रहे । इक्कीसवे दिन बिल्कूल ऐसा लगेगा कि जैसे अपूर्व सी
सुगंध फैल गई है, इसके बाद नित्य ऐसी सुगंध और ऐसा आभास होगा।
36 वें दिन बिल्कुल ऐसा लगेगा कि जैसे कोई अद्वितीय सुन्दी आसन
कै पास आकर बैठ गई है, मगर साधक अविचलित न हो और मंत्र जप करता रहे
47 वें दिन साधक की परीक्षा आरम्भ होती है, और वह सशरीर उपस्थित होकर
साधक की गोदी में बैठ जाती है, फिर भी साधक को चाहिए कि वह न तो विचलित
हो और न कामोत्तेजक हो | 49 वें दिन बह अपूर्व श्रृंगार कर साधक से सट कर बैठ
जाएगी और पूछेगी कि मेरे लिए क्या आज्ञा है, तब साधक कहे कि मेरी पत्नी बन
प्रेमिका की तरह प्रसन्न करो, तब वह सिद्ध हो जाती है, और जीवन भर सुख, काम
द्रव्य प्रदान करती रहती है।
यह आजमाया हुआ तंत्र है, और अपने आप में प्रामाणिक सिद्ध प्रयोग है,
एक बार सिद्ध करने पर फिर जीवन में बार-बार प्रयोग करने की जरूरत नहीं रहती
इस साधना में तीन बातें आवश्यक हैं -- ।
१. साधनाकाल में 49 दिन तक किसी से भी कुछ भी न बोले।
2. साधना के बाद अप्सरा सिद्ध होने पर परस्त्रीगमन न करे।
3. अप्सरा सिद्ध होने पर उसके साथ रमण करे, जो कुछ भी चाहे प्राप्त
करे, पर द्रव्य का दुरुयोपयोग न करे।
यह साधना आज भी जीवित है, और वर्तमान में भी कई तांत्रिकों ने इसे
सिद्ध कर रखा है। वस्तुत: यह जीवन की एक अदभुत और पूर्ण सुखोपभोग देने
वाली सौन्दर्यमयी साधना है, जिसे सिद्ध करने में शास्त्रीय दृष्टि से भी किसी प्रकार
का बन्धन गा दोष नहीं है। प्रत्यक्ष रूप से देखने पर यह साधना लम्बी प्रतीत होती
है किंतु इसके मंत्र पर ध्यान दें तो यह अन्य साधना की अपेक्षा सरल की कही जा
सकती है। साथ ही महर्षि विश्वामित्र के द्वारा प्रणीत होने के कारण इसकी
प्रामाणिकता स्वयं सिद्ध है।