शनिवार, 2 जुलाई 2016

जब एक गरीब को मिला पारस पत्थर जिसके छुते ही लोहा बन जाता था सोना (When the poor had become a philosopher's stone which was touching the iron gold)

जब एक गरीब को मिला पारस पत्थर जिसके छुते ही लोहा बन जाता था सोना (When the poor had become a philosopher's stone which was touching the iron gold)


 पुराने समय से ही एक ऐसे पत्थर की बात की जाती रही है, जिसके स्पर्श मात्र से लोहे की वस्तु सोने की बन जाती है। इस चमत्कारी पत्थर को पारस पत्थर के नाम से जाना जाता है। इसके संबंध में कई किस्से-कहानियां प्रचलित हैं। पारस पत्थर का नाम काफी लोगों ने सुना है, लेकिन ये दिखता कैसा है, इसका स्वरूप कैसा है? यह कहां है? ये सभी प्रश्न आज भी अबुझ पहेली बने हुए हैं।

पारस पत्थर के रहस्य से पर्दा उठाने के लिए कई प्रकार के शोध हुए हैं, लेकिन फिर भी इस पत्थर के संबंध में पूर्ण जानकारी उपलब्ध नहीं हुई है। सिर्फ किस्से-कहानियों तक ही इस पत्थर का वजूद है। यहां पढ़िए पारस पत्थर से जुड़ी एक कहानी...

निर्धनता से तंग आकर किसी गरीब ब्राह्मण ने भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए कठोर व्रत किया। शंकरजी ने उसे स्वप्न में दर्शन देकर कहा, ‘वृंदावन में सनातन गोस्वामी के पास जाकर उनसे पारस पत्थर मांगो, उससे तुम्हारी निर्धनता दूर हो जाएगी।’ जब वह सनातन गोस्वामी से मिला तो उसे पारस पत्थर उनके पास होने पर शंका हुई, क्योंकि, उनके तन पर मात्र एक जीर्ण धोती और दुपट्टा था। फिर भी उसने गोस्वामीजी को अपनी निर्धनता के बारे में बताते हुए पारस पत्थर मांगा।
गोस्वामीजी बोले, ‘एक दिन जब मैं यमुना में स्नान कर लौट रहा था तो किसी पत्थर से मेरा पैर टकराया। उसकी आभा देखकर मुझे वह अद्भुत प्रतीत हुआ। उस पर पैर न पड़े इस विचार से मैंने उसे वहीं मिट्टी के नीचे दबा दिया और दोबारा स्नान करके लौट आया। तुम पत्थर को वहां से निकाल लो। वही पारस पत्थर है।’
यह कहकर स्वामीजी ने ब्राह्मण को वह स्थान बता दिया। ब्राह्मण वहां गया, पारस पत्थर निकाला और साथ लाए लोहे के टुकड़ों को उसका स्पर्श कराया, वे स्वर्ण में बदल गए। ब्राह्मण के मन में आया कि स्वर्ण के अधिकारी तो गोस्वामीजी हैं, किंतु वे तो इससे दूर रहना चाहते हैं, इसलिए पारस के स्पर्श के बाद पुन: स्नान किया। जरूर उनके पास इससे अधिक मूल्यवान वस्तु है, जो भगवद् भक्ति से मिलती है।
उसी पल ब्राह्मण ने पारस पत्थर को वहीं दबाया और स्वर्ण को नदी में फेंककर गोस्वामीजी के पास आकर उनसे दीक्षा ली। लोभरहित विशुद्ध चित्त ने ब्राह्मण की सभी समस्याएं हर लीं और उसने भगवद् भक्ति का असीम सुख पा लिया। भौतिक प्राप्तियों में आत्मिक सुख नहीं है, वहां तो मात्र देह का सुख है। यदि लक्ष्य परम सुख की उपलब्धि हो, तो भौतिक प्रपंचों से दूर रहना चाहिए।
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