“गधा और शेर – आत्मविश्वास की जीत”
बहुत समय पहले की बात है, एक घने जंगल के किनारे एक गाँव था। उस गाँव में एक गधा रहता था जिसका नाम था भोला। भोला साधारण गधा नहीं था। उसका शरीर मजबूत था, लेकिन वह खुद को लेकर हमेशा संकोच में रहता। उसे लगता कि वह किसी काम का नहीं है। लोग उसे आलसी कहते थे, कुछ बच्चे उसे चिढ़ाते भी थे — “अरे गधे, तुझे क्या आता है? तू तो सिर्फ बोझ उठाने के लिए ही बना है।”
भोला यह सब सुनकर उदास हो जाता। वह सोचता — “शायद मैं सच में निकम्मा हूँ। मेरे जैसे जानवर की तो कोई कद्र नहीं करता।” उसका आत्मविश्वास दिन-ब-दिन गिरता जा रहा था।
उसी जंगल में एक शेर भी रहता था। उसका नाम था वीरेंद्र। वह ताकतवर, बहादुर और आत्मनिर्भर था। पूरे जंगल में उसकी गरिमा थी। सभी जानवर उसका सम्मान करते थे। परंतु वीरेंद्र के मन में भी एक पीड़ा थी। कई बार उसे लगता कि उसकी ताकत ही उसकी पहचान है। वह सोचता — “अगर ताकत न होती तो कौन मुझे पूछता? क्या मेरा अस्तित्व सिर्फ डर दिखाने तक सीमित है?”
एक दिन, भाग्य ने ऐसी दिशा में मोड़ लिया जहाँ इन दोनों की मुलाकात हुई।
पहली मुलाकात – संकोच और अहंकार
गर्मी का मौसम था। भोला जंगल के किनारे घास ढूँढ़ रहा था। थका हुआ वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया। तभी वीरेंद्र शेर वहीं से गुज़रा। उसने भोला को देखा और हँस पड़ा —
“अरे गधे! यहाँ जंगल में क्या कर रहा है? लौट जा अपने गाँव। यहाँ तो ताकतवर ही जीते हैं।”
भोला सकपका गया। उसने डरते हुए कहा —
“मुझे घास चाहिए… और मैं बस यहीं बैठा हूँ। मैं तो किसी के काम का नहीं हूँ।”
वीरेंद्र ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में कठोरता थी, परंतु कहीं न कहीं एक अकेलापन भी छिपा था। उसने कहा —
“हर कोई किसी न किसी काम का होता है। ताकत ही सब कुछ नहीं होती।”
भोला चौंक गया।
“सच?” उसने पहली बार अपनी आँखें उठाकर देखा।
वीरेंद्र ने कहा —
“हाँ, तुम जैसे जानवर बिना शोर किए भी काम करते हैं। पर तुम खुद पर विश्वास नहीं करते।”
यह सुनते ही भोला के मन में आशा की किरण जागी। लेकिन उसने फिर भी कहा —
“मुझे तो कभी किसी ने सराहा नहीं।”
वीरेंद्र मुस्कराया —
“कभी-कभी हमें खुद अपनी कीमत पहचाननी होती है।”
संघर्ष का समय
कुछ दिनों बाद जंगल में सूखा पड़ गया। घास कम हो गई, तालाब सूखने लगे। सभी जानवर परेशान थे। ताकतवर शेर भी अब कमजोर महसूस कर रहा था। वह खुद शिकार ढूँढ़ने में संघर्ष कर रहा था। दूसरी ओर, भोला गाँव में भी अपने हिस्से की घास जुटाने में परेशान था। दोनों अपने-अपने स्थान पर असफलता महसूस कर रहे थे।
एक दिन वीरेंद्र जंगल में भटकते-भटकते उस गाँव के पास आ पहुँचा जहाँ भोला रहता था। वह बेहद थका और भूखा था। तभी उसने भोला को देखा। भोला घास ढूँढ़ने की कोशिश कर रहा था लेकिन निराश हो गया था।
वीरेंद्र ने पुकारा —
“भोला! क्या हाल है?”
भोला ने थके स्वर में कहा —
“सब खत्म हो गया है… मैं तो कुछ कर नहीं सकता। मैं वापस जंगल भी नहीं जाना चाहता।”
वीरेंद्र कुछ देर चुप रहा। फिर उसने कहा —
“क्या तुम मेरे साथ चलोगे? शायद हम मिलकर कुछ कर सकते हैं।”
भोला पहले तो डर गया। वह बोला —
“मैं तो कमजोर हूँ… आपकी मदद कैसे करूँगा?”
वीरेंद्र ने उसकी आँखों में देख कर कहा —
“हर किसी में ताकत होती है। बस उसे पहचानने की जरूरत है।”
सहयोग की शुरुआत
दोनों ने तय किया कि वे मिलकर अपने लिए भोजन और पानी ढूँढ़ेंगे। भोला अपने धैर्य और मेहनत से रास्तों को पहचानता था। वह बिना शिकायत, बिना थके चल सकता था। वीरेंद्र अपनी ताकत और साहस से कठिन रास्तों को पार कर सकता था। दोनों ने मिलकर जंगल की दिशा में चलना शुरू किया।
रास्ते में उन्हें काँटों से भरी पगडंडी मिली। वीरेंद्र ने आगे चलकर रास्ता साफ किया और भोला को आगे बढ़ने दिया। कुछ दूर चलने के बाद उन्हें सूखी झाड़ियों के पीछे कुछ हरी घास दिखी। भोला की आँखें चमक उठीं। वह खुशी से उछल पड़ा। उसने कहा —
“देखिए! अगर मैं अकेला होता तो यहाँ तक नहीं पहुँचता!”
वीरेंद्र ने हँसते हुए कहा —
“अगर मैं अकेला होता तो रास्ते में ही हार मान लेता।”
परिवर्तन की राह
धीरे-धीरे दोनों की दोस्ती गहरी होती गई। वीरेंद्र ने देखा कि भोला न केवल मेहनती है, बल्कि दूसरों का ख्याल भी रखता है। वह खुद थका होने पर भी किसी और के लिए रास्ता साफ करता। दूसरी ओर, भोला ने देखा कि वीरेंद्र सिर्फ ताकतवर नहीं, बल्कि दयालु और सहायक है।
दोनों ने मिलकर जंगल के अन्य जानवरों की मदद करनी शुरू की। उन्होंने सूखी झाड़ियों के पीछे छुपे पानी के स्रोत खोजे, कुछ जगहों पर घास के बीज बोए और तालाबों के पास गिरे पत्तों को हटाकर पानी की सफाई की। धीरे-धीरे पूरे जंगल में जीवन लौटने लगा।
अब जब कोई जानवर परेशान होता, तो दोनों उसकी मदद करते। वीरेंद्र की ताकत और भोला का धैर्य मिलकर एक ऐसा उदाहरण बन गए कि छोटे-बड़े, ताकतवर-कमज़ोर का भेद मिट गया।
आत्मविश्वास की जीत
कुछ महीनों बाद जंगल में फिर से हरियाली लौट आई। जानवरों ने मिलकर उत्सव मनाया। सभी ने भोला और वीरेंद्र को धन्यवाद दिया। भोला की आँखों में खुशी के आँसू थे। वह बोला —
“मुझे कभी नहीं लगा था कि मैं किसी के काम आ सकता हूँ। आपने मुझ पर विश्वास किया, तभी मैं खुद पर विश्वास कर सका।”
वीरेंद्र ने मुस्कराकर कहा —
“सच्ची ताकत वह है जो किसी और का हाथ थामे। अगर हम अपने डर से बाहर आएँ, तो कोई भी मुश्किल बड़ी नहीं रहती।”
भोला ने सिर उठाकर जंगल की ओर देखा और कहा —
“अब मुझे पता है कि मैं सिर्फ एक गधा नहीं हूँ। मैं धैर्य, मेहनत और सेवा का प्रतीक हूँ।”
वीरेंद्र ने भी कहा —
“और मैं सिर्फ शेर नहीं, बल्कि नेतृत्व और सहानुभूति का उदाहरण हूँ।”
कहानी का संदेश
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि आत्मविश्वास, सहयोग और धैर्य किसी भी कठिन परिस्थिति को बदल सकते हैं। ताकत होना अच्छा है, लेकिन संवेदनशीलता और परिश्रम उससे भी बड़ी ताकत हैं। किसी की मदद करना, किसी का साथ देना और खुद पर विश्वास करना — यही असली नेतृत्व है।
हर व्यक्ति, चाहे वह बड़ा हो या छोटा, ताकतवर हो या कमजोर — अपने भीतर अनगिनत संभावनाएँ छुपाकर बैठा है। बस उन्हें पहचानने और आगे बढ़ाने की जरूरत है।
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें