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छत्तीसगढ़ के इस मंदिर में दूर दूर से आते है संतान प्राप्ति के लिए , chhattisgarh ke is mandir me dur dur se aate hai santan prapti ke liye

छत्तीसगढ़ के इस मंदिर में दूर दूर से आते है  संतान प्राप्ति के लिए , chhattisgarh ke is mandir me dur dur se aate hai santan prapti ke liye  






छत्तीसगढ़ अपनी पुरातात्विक सम्पदा के कारण आज भारत ही नहीं बल्कि विश्व में भी अपनी एक अलग ही पहचान बना चुका है। यहाँ के 15000 गांवों में से 1000 गांव में कही न कही प्राचीन इतिहास के साक्ष्य आज भी विद्ययामान है। जो कि छत्तीसगढ़ के लिए एक गौरव की बात है
इसी प्रकार का प्राकृतिक एवं धार्मिक व पुरातात्विक स्थल रमई पाठ सोरिद खुर्द ग्राम में है विध्यमान है जो विश्व भर में संतान प्राप्ति के लिए विख्यात है

रामायण काल से जुडी है इस स्थान की कहानी :-

माँ रमई पाठ धाम की कहानी रामायण काल से जुडी है यहाँ के पुराने बुजुर्ग लोग बताते है की रामायण काल में जब भगवन राम ने अपने प्रजा के सुख के लिए अपने सुख का त्याग कर माता सीता को वन में छोड़ दिया था तब भगवान श्री राम के अनुज लक्ष्मण जी माता सीता को सोरिद खुर्द के जंगल में छोड़ा था तब यहाँ माता सीता के साथ कोई नहीं था , जब माता सीता को प्यास लगी थी तब लक्ष्मण जी शक्ति बाण चलाकर माता गंगा को माता सीता के सेवा के लिए रमई पाठ में बुलाया रमई पाठ में माता गंगा विद्यमान है यहाँ एक आम का पेड़ है जिसके जड़ से माता गंगा हमेशा प्रवाहित होती रहती है इस जगह से निकलने वाला जल कुछ दुरी पर जाकर लुप्त हो जाती है यह जल कहाँ जाता है किसी को नहीं पता ,माता सीता को ही रमई कहा जाता है यह जगह रामायण कल से माता सीता (रमई ) से जुडी हुई है इस कारण इस स्थान का नाम रमई पाठ पड़ा । बताया जाता है की माता सीता यहाँ से अंतर्ध्यान होकर छत्तीसगढ़ के एक स्थान तुरतुरिया चली गयी थी इसके बारे में मै आपको जानकारी इकठ्ठा कर बताऊंगा

संतान प्राप्ति के लिए जाना जाता है रमई पाठ :-

मनोकामना पूर्ण होने पर चढ़ाया जाने वाला लोहे का संकल 




रमई पाठ में अधिकतर ऐसे दम्पति आते है जिनकी कोई संतान नहीं होता कहते है यहाँ जो मनोकामना मागो पूरी होती है, मनोकामना पूर्ण होने पर यहाँ लोहे का संकल चढ़ाया जाता है या बकरे की बली दी जाती है ,मेरे ख्याल से ये गलत है कोई व्यक्ति अपनी खुशी या अपने जान की सलामति के लिए किसी बेजान की जान लेले ये मेरा हृदय कभी स्वीकार नहीं करता ये लोगो द्वारा अपने स्वार्थ के के लिए बनाया गया नियम है , जो हमारे सात्विक देवी देवता स्वीकार नहीं करते |

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हर साल लगता है मेला :-

यहाँ विस्थापित प्राचीन कालीन मुर्तियो में नरसिंह नाथ, देवी के रूप में हनुमान जी की प्रतिमा, भगवान् शंकर,भगवान् विष्णु, रूद्र भैरव, काना कुँवर व रमई माता की मुर्तिया शामिल है। माना जाता है कि यहाँ की सभी मुर्तिया फिंगेश्वर राज घराने द्वारा स्थापित की गई थी। फिंगेश्वर गोड़ राजाओं की जमीदारी थी। जो अपने राज्य पर आने वाली विपत्तियो, प्राकृतिक बाधाएँ एवं अन्य कारणो से सुरक्षा की दृष्टि से अपने कुल देवी के रूप स्थापना की गई हैं। जहाँ चैत शुक्ल पक्ष पुर्णिमा पर जातरा (मनोकामना यात्रा) चड़ता था।

वन औषधियों से परिपूर्ण:-


सोरिदखुर्द चारो ओर से पहाड़ियो से घिरा हुआ है। ग्राम के उत्तर में मॉ रमई पाठ का स्थान है जिसे माँ रमई डोगरी के नाम से जानते है। यह घने वनो से आच्छादीत, वन औषधियों से परिपूर्ण प्राकृतिक छटा को अपने में समेटे हुए है। पहले यहां जंगली जानवरो की बहुतायत थी लेकिन ब जंगलो के कटने के कारण जंगली जानवर बहुत कम देखने को मिलता है। जहां वन समिति एवं फारेस्ट रिजर्व द्वारा मॉ रमई पाठ की आरक्षित क्षेत्र के विकास के लिए प्रयत्नशील है।

रामायण का साक्ष्य का प्रतिक :-

रामसेतु में उपयोग किया गया रामशीला 



जब भगवान् राम को अपनी पूरी सेना को लेकर लंका जाना था तब लंका मार्ग में समुद्र होने के कारण सेना का लंका पहुंचना बहुत ही मुश्किल था ऐसे में समुद्र में पत्थर से रास्ता बनाया गया जो पानी के उपर तैरता था जिस जगह पर ये पुल बनाया गया था आज वो जगह रामसेतु के नाम से जाना जाता है जो भारत के दक्षिण में रामेश्वरम के नाम से प्रसिद्ध है माँ रमई पाठ धाम में वहां से रामसेतु का पत्थर लाया गया है जिसे एक छोटा सा कुण्ड में रखा गया है यह पत्थर पानी में ऐसे तैरता है जैसे इसका वजन बिलकुल भी न हो पर इसे हाथ में उठाने पर बहुत वजन है

चमत्कारिक एवं अद्भुत शक्ति का प्रतीक:-

आम के पेड़ से निकलती गंगा मैया 


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चमत्कारिक शक्ति यहाँ का आम का पेड़ है। जिसके जड़ से हमेशा स्वच्छ, मीठा व निर्मल जल धारा बहती रहती हैं। पुरे पहाड़ी में कही भी पानी नही मिलेगी लेकिन आम के इस वृक्ष के जड़ से बारहों महिने सत्त जलधारा प्रवाहित होती रहती है जो एक फलॉग की दुरी तक डोगा पथरा से निचे गिरते कुछ दूरी पर जाकर विलुप्त हो जाती है। कहा जाता है कि फिंगेश्वर के राजा महेन्द्र बहादुर के पूर्वज यहा प्रति वर्ष चैत पुर्णिमा पर लाव-लश्कर के साथ देवी के दरबार में जात्रा मनाने आते थे। तब निचे राजा पड़ाव (विश्राम-स्थल) से नंगे पैर चलकर डोगा पथरा की पूजा अर्चना कर गिरती जल से स्नान करने के बाद देवी दर्शन करते थे। यहाँ परंम्परा आज भी कायम हैं। राज परिवार के सदस्यो द्वाराडोगा पथरा से गिरती जल से स्नान पश्चात ही मॉ रमई पाठ के दरबार में पहुंचते है।

आज भी माता सीता का अनुभव :-

यहां आम का वृक्ष है जो सदियों पुराने हाने के बाद भी एक ही जैसा है। इसके साथ-साथ अदृश्य रूप में भी माता की अनुभूति कुछ लोगो ने की है। जिनके प्राण संकट के समय अनुभव होने की बात कही। जिसके कारण यहां लोगो में आस्था व विश्वास बनी

पहुँच मार्ग :-

राजधानी रायपुर से 75 कि.मी. दुर एवं प्रयाग तीर्थ राजिम से पूर्व दिशा में 30 कि. मी., फिंगेश्वर छुरा मार्ग पर फिंगेश्वर से महज 12 कि.मी. व छुरा से 24 कि.मी. दुर सोरिद खुर्द की पहाड़ी पर माँ रमई पाठ देवी का मंदिर है।


मित्रो आपके अमूल्य सुझाव की प्रतीक्षा रहेगी इस धन्यवाद



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