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माँ जतमाई धाम की अनसुनी कहानी maa jatmai dham ki ansuni kahani

छत्तीसगढ़  की ख्याति प्राचीन  युग से छत्तीसगढ़ियो  से है किन्तु छत्तीसगढ़ के वन सम्पदा जंगली जानवर और जंगल में रहने बसने  वाले आदिवाशी समाज आज भी सैलानियों की रोमांच और सिहरन के लिए पर्याप्त है छत्तीसगढ़ विपुल वन सम्पदा का प्रदेश है जो पर्यटन के दृष्टिकोण से अपार सम्भावनाये लिए हुए है | क्योंकि यहाँ के घने जंगलो में विभिन्न प्रकार के वन्य प्राणी एवं पशु पक्षी एवं ऊँची -ऊँची पहाड़ियों से गिरती झरने और सबसे बड़ा आकर्षण यहाँ की आदिवाशी संस्कृति है , पर्यटन विकाश की दृष्टि से इस प्रदेश में असीम सम्भावनाये है , छत्तीसगढ़ के जंगलो की खूबसूरती खेतो की हरियाली और यहाँ की विविधता पूर्ण संस्कृति की ओर देश व दुनिया के पर्यटकों का ध्यान आकृष्ट करते है प्रकृति की अनुपम वरदान छुरा वह धरा है जहाँ नैसर्गिक सौंदर्य यत्र - तत्र  बिखरा पड़ा है | सज्जित तिमिर श्रींगार कर रहस्य और रोमांच का अनूठा संसार गढ़ते है | घने वन प्रातर, बहेरा , चार , तेंदू, महुआ , साजा , बीजा, आदि की हरीतिमा वनांचल छुरा के प्राकृतिक सौंदर्य पर न केवल चार चाँद लगते है वरन छुरा आने वाले पर्यटकों को कौतुहल पूर्ण नजरो से निहारते तथा दांतों टेल ऊँगली दबाने को मजबूर कर देता है | सचमुच छुरा में नैसर्गिक सौंदर्य बिखरा पड़ा है शेर ,भालू,चिता,सियार,बन्दर,नील गाय आदि की उपस्तिथि रोमांचित कर देता है, प्राकृतिक वरदानो से भरा क्षेत्र की गोद में यहाँ की संस्कृति रची बसी है ,जहाँ क्षेत्र के चारो तरफ पहाडियों में जतमई ,घटारानी , रमईपाठ , टेंग्नाही ,जटियाई ,खोप्लिपाट ,रानीमाँ जैसी देवियों देवियों का निवाश स्थान है , जहाँ क्षेत्र के जनसमुदायों की  आस्था  एवं विश्वाश जुडी है इन्ही में जतमईगढ़ कुछ साल पहले जहाँ बिया बान जंगल था | अब वह तीर्थ स्थल का रूप ले चूका है |
वहां के कल - कल करते झरने और पहाड़ियों से घिरी सुरम्य वादियाँ आगतुक द्रोलानियों को लुभा रही है | आलम यह है की जतमईगढ़ स्थित जतमई माता की महिमा विदेशो में भी पहुँच गयी है | जतमई के ग्रामीण बगैर किसी  सरकारी सहायता के एक करोड़ की लगत से मन्दिर बना रहे है | हालांकि ग्रामीण इसे जतमई माता की कृपा मानते है


दान से बन रहा एक करोड़ का मन्दिर  -   
जतमई धाम में दान दाताओं का सहयोग से एक करोड़ की लागत से भव्य मन्दिर का निर्माण कराया गया | वाही लगभग 95 लाख की  महाकाल मन्दिर का निर्माण किया जा रहा है | पूर्णता की ओर उत्कल शैली में निर्मित भवन दर्शन्य है | दक्षिण मुखी मन्दिर में अलंकृत कलाकृतियाँ रमन्य है जो मन्दिर की सुन्दरता में चार चाँद लगा देती है | मन्दिर के  गर्भ गृह में माँ जतमई विराजित है जहाँ पर्वतों की खोह से कल - कल करती        जल धरा पठारों व चट्टानों से टकराती हुई माँ जतमई की चरण पखारते हुए झरने का रूप ले 200 फिट गहरे कुंड में गिरती है जहाँ से पश्चिम में निर्मित विशाल तौरेंगा जलाशय में समाहित होता है | जिससे क्षेत्र के हजारो एकड़ जमींन  की सिचाई इस विशाल जलाशय से  होती  है | जो क्षेत्र के लिए माता का अनुपम वरदान प्राप्त है | अतः क्षेत्र वाशी माता को अन्नपूर्णा के रूप में मानते है 

आदिशक्ति  माँ जतमई जगदम्बा है - 

छत्तीसगढ़ की बोली नमो का उच्चारण अब अप्भ्रंश रूप में ज्यादातर देखने को मिलता है | माँ जतमईगढ़ धाम में माता जत्मै के नाम से प्रसिद्ध है | छत्तीसगढ़ शब्द जतमई का हिंदी शुद्ध रूप जत - मई यानि जत माना जगत से और मई अर्थात जगत माँ जगदम्बा है आदिशक्ति माँ जतमई साक्षात् ज्योतिमई जगदम्बा है जो यहाँ जतमई के नाम से विश्वविख्यात है |    

अदृश्य सत्ता ने सात्विकता का भाव जगाया -     




1995 के पहले बियाबान जंगल जहाँ रास्ते भी नहीं थे , एक पुजारी वहां तपश्या करता था उसी समय से वहां आस - पास से लोगो का आना जाना शुरू हुआ | एक रोज तौरेंगा के सरपंच शिवदयाल ध्रुव माता के दरबार में पहुंचे , माता के दर्शन कर लौटते समय उन्हें आभास हुआ की माँ जतमई के अदभुत व अदृश्य शक्ति  उसके साथ है , वे घर पहुँच कर कुछ देर एकांत में बैठे माता जी ने कुछ छण के लिए प्रकाश के रूप में उन्हें दर्शन दिए | एवं उनके अन्दर सात्विकता का भाव जागते रहे , जिससे उसके मन में बलि प्रथा बंद करवाकर सात्विक पूजा व ज्योति कलश प्रज्वलित करने का भाव जागृत हुआ | उन्होंने माता जत्मई   से जो अनुभूति प्राप्त हुआ था उसे अंचल के बुजुर्गो को बताया तब माता जतमई की प्रेरणा से सभी ने अपना विचार कर यज्ञ मूर्ति श्री श्री १००८ संत सिया श्री भुवनेश्वरी शरण व्याश जी महाराज व पूज्य महात्मा श्री नारायण भगत के सानिध्य में सन  1997 में पहली बार ज्योति प्रज्वलित किये| एवं ब्राह्मणों के माध्यम से सारे कार्य संपादन किये गए तब से यहाँ बलि प्रथा बंद कर सात्विक पूजा चली आ रही है |    

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