सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

जन्म से मृत्यु तक का सफर गरुड़ पुराण के अनुसार janm se lekar mrityu tak ka safar garud puran ke anushar

जन्म से मृत्यु तक का सफर गरुड़ पुराण के अनुसार

 

किसी भी महिला के लिए वह क्षण बहुत गर्व का होता है, जब वह मां बनती है। 
गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु ने अपने परम भक्त और वाहन गरुड़ को जीवन-मृत्यु, स्वर्ग, नरक, पाप-पुण्य, मोक्ष पाने के उपाय आदि के बारे में विस्तार से बताया है। गरुड़ पुराण में यह भी बताया गया है कि शिशु को माता के गर्भ में क्या-क्या कष्ट भोगने पड़ते हैं और वह किस प्रकार भगवान का स्मरण करता है। गर्भस्थ शिशु के मन में क्या-क्या विचार आते हैं, ये भी गरुड़ पुराण में बताया गया है। आज मै गरुड़ पुराण में लिखी यही बातें आपको बता रहा हु , जो इस प्रकार हैं-
3. एक महीने में मस्तक, दूसरे महीने में हाथ आदि अंगों की रचना होती है। तीसरे महीने में नाखून, रोम, हड्डी, लिंग, नाक, कान, मुंह आदि अंग बन जाते हैं। चौथे महीने में त्वचा, मांस, रक्त, मेद, मज्जा का निर्माण होता है। पांचवें महीने में शिशु को भूख-प्यास लगने लगती है। छठे महीने में शिशु गर्भ की झिल्ली से ढंककर माता के गर्भ में घूमने लगता है।
11. गरुड़ पुराण के अनुसार, जैसी बुद्धि गर्भ में, रोग आदि में, श्मशान में, पुराण आदि सुनने में रहती है, वैसी बुद्धि सदा रहे तब इस संसार के बंधन से कौन नहीं छूट सकता। जिस समय शिशु कर्म योग द्वारा गर्भ से बाहर आता है, उस समय भगवान विष्णु की माया से वह मोहित हो जाता है। माया से मोहित तथा विनाश वह कुछ भी नहीं बोल सकता और बाल्यावस्था के दु:ख भी भोगता है।
माता के गर्भ में नौ महीनों तक शिशु का पालन-पोषण होता है।
मेडिकल साइंस के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान माता जो भी खाती-पीती है, उसी का अंश गर्भस्थ शिशु को भी मिलता है। 
यही बात हिंदू धर्म ग्रंथों में भी बताई गई है। गरुड़ पुराण में शिशु के माता के गर्भ में आने से लेकर जन्म लेने तक का स्पष्ट विवरण दिया गया है।

1. गरुड़ पुराण के अनुसार, स्त्रियों में ऋतु काल आने से संतान की उत्पत्ति होती है, इस कारण तीन दिन स्त्रियां अपवित्र रहती हैं। ऋतु काल में पहले दिन स्त्री चांडाली, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी के समान तथा तीसरे दिन धोबिन के समय रहती हैं। इन तीन दिनों में नरक से आए हुए जीव उत्पन्न होते हैं।

2. ईश्वर से प्रेरित हुए कर्मों से शरीर धारण करने के लिए पुरुष के वीर्य बिंदु के माध्यम से स्त्री के गर्भ में जीव प्रवेश करता है। एक रात्रि का जीव कोद (सूक्ष्म कण), पांच रात्रि का जीव बुदबुद (बुलबुले) के समान तथा दस दिन का जीव बदरीफल (बेर) के समान होता है। इसके बाद वह एक मांस के पिण्ड का आकार लेता हुआ अंडे के समान हो जाता है।



4. माता द्वारा खाए गए अन्न आदि से बढ़ता हुआ वह शिशु विष्ठा (गंदगी), मूत्र आदि का स्थान तथा जहां अनेक जीवों की उत्पत्ति होती है, ऐसे स्थान पर सोता है। वहां कृमि जीव के काटने से उसके सभी अंग कष्ट पाते हैं, जिसके कारण वह बार-बार बेहोश भी होता है। माता जो भी कड़वा, तीखा, रूखा, कसैला आदि भोजन करती है, उसके स्पर्श होने से शिशु के कोमल अंगों को बहुत कष्ट होता है।

5. इसके बाद शिशु का मस्तक नीचे की ओर तथा पैर ऊपर की ओर हो जाते हैं, वह इधर-उधर हिल नहीं सकता। जिस प्रकार से पिंजरे में रूका हुआ पक्षी रहता है, उसी प्रकार शिशु माता के गर्भ में दु:ख से रहता है। यहां शिशु सात धातुओं से बंधा हुआ भयभीत होकर हाथ जोड़ ईश्वर की (जिसने उसे गर्भ में स्थापित किया है) स्तुति करने लगता है।

6. सातवें महीने में उसे ज्ञान की प्राप्ति होती है और वह सोचता है- मैं इस गर्भ से बाहर जाऊंगा तो ईश्वर को भूल जाऊंगा। ऐसा सोचकर वह दु:खी होता है और इधर-उधर घूमने लगता है। सातवें महीने में शिशु अत्यंत दु:ख से वैराग्ययुक्त हो ईश्वर की स्तुति इस प्रकार करता है- लक्ष्मी के पति, जगदाधार, संसार को पालने वाले और जो तेरी शरण आए उनका पालन करने वाले भगवान विष्णु का मैं शरणागत होता हूं।

7. गर्भस्थ शिशु भगवान विष्णु का स्मरण करता हुआ सोचता है कि हे भगवन। तुम्हारी माया से मैं मोहित देह आदि में और यह मेरे ऐसा अभिमान कर जन्म मरण को प्राप्त होता हूं। मैंने परिवार के लिए शुभ काम किए, वे लोग तो खा-पीकर चले गए मैं अकेला दु:ख भोग रहा हूं। हे भगवन। इस योनि से अलग हो तुम्हारे चरणों का स्मरण कर फिर ऐसे उपाय करुंगा, जिससे मैं मुक्ति को प्राप्त कर सकूं।

8. फिर गर्भस्थ शिशु सोचता है मैं दु:खी विष्ठा व मूत्र के कुएं में हूं और भूख से व्याकुल इस गर्भ से अलग होने की इच्छा करता हूं, हे भगवन। मुझे कब बाहर निकालोगे? सभी पर दया करने वाले ईश्वर ने मुझे ये ज्ञान दिया है, उस ईश्वर की मैं शरण में जाता हूं, इसलिए मेरा पुन: जन्म-मरण होना उचित नहीं है।

9. गरुड़ पुराण के अनुसार, फिर माता के गर्भ में पल रहा शिशु भगवान से कहता है कि मैं इस गर्भ से अलग होने की इच्छा नहीं करता क्योंकि बाहर जाने से पापकर्म करने पड़ते हैं, जिससे नरक आदि प्राप्त होते हैं। इस कारण बड़े दु:ख से व्याप्त हूं फिर भी दु:ख रहित हो आपके चरण का आश्रय लेकर मैं आत्मा का संसार से उद्धार करुंगा।

10. इस प्रकार गर्भ में बुद्धि विचार कर शिशु नौ महीने तक स्तुति करता हुआ नीचे मुख से प्रसूति के समय वायु से तत्काल बाहर निकलता है। प्रसूति की हवा से उसी समय शिशु श्वास लेने लगता है तथा अब उसे किसी बात का ज्ञान भी नहीं रहता। गर्भ से अलग होकर वह ज्ञान रहित हो जाता है, इसी कारण जन्म के समय वह रोता है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मौली माता मंदिर फिंगेश्वर जिनके चमत्कार के बारे में शायद ही आपको पता होगा ( the mauli mata tempale fingeshwar)

मौली माता  गोड़वाना राज फिंगेश्वर नगर के पश्चिम दिशा में विराजित माँ मौली माता का विशाल मन्दिर प्रांगण है | मौली माता फिंगेश्वर राज में सभी वर्ग विशेष की आराध्य देवी है | माता के दर्शन हेतु भक्तगण  माता के दरबार से कभी खली हांथ वापस माहि होते शक्ति स्वरुप माँ मौली देवी क्षेत्र के जन मानस में रची बसी है | पौराणिक मान्यता व पुजारी सोभा राम भंडारी के अनुसार फिंगेश्वर राज का राजा ठाकुर दलगंजन सिंह यात्रा में जा रहे थे तभी अचानक हमलावरों ने आक्रमण कर दिया वाही मौली माता एक बुधिया के रूप में आयी वहा राजा  ठाकुर दलगंजन सिंह हमलावरों से घिर गए थे की अचानक माता जी का साक्षात्कार हुआ , माता मौली का मूर्ति रूप  माता जी की कुछ इशारा पते ही रजा साहब उठ खड़े हुए और हमलावरों के साथ युद्ध किया और विजयी हुए | तब राजा साहब ने माता के पास जाकर प्रणाम कर वापिस महल की ओर आने लगे वहां वृधा का रूप लेकर कड़ी माता भी राजा साहब के पीछे पीछे आने लगी तब रजा साहब को अदृश्य शक्ति का अनुभव हुआ | राजा साहब के निवेदन पर माता जी सांग में बैठ कर फिंगेश्वर राज महल आयी | वह आदर सम्मान पूर्वक वृधा...

जब एक गरीब को मिला पारस पत्थर जिसके छुते ही लोहा बन जाता था सोना (When the poor had become a philosopher's stone which was touching the iron gold)

जब एक गरीब को मिला पारस पत्थर जिसके छुते ही लोहा बन जाता था सोना (When the poor had become a philosopher's stone which was touching the iron gold)   पुराने समय से ही एक ऐसे पत्थर की बात की जाती रही है, जिसके स्पर्श मात्र से लोहे की वस्तु सोने की बन जाती है। इस चमत्कारी पत्थर को पारस पत्थर के नाम से जाना जाता है। इसके संबंध में कई किस्से-कहानियां प्रचलित हैं। पारस पत्थर का नाम काफी लोगों ने सुना है, लेकिन ये दिखता कैसा है, इसका स्वरूप कैसा है? यह कहां है? ये सभी प्रश्न आज भी अबुझ पहेली बने हुए हैं। पारस पत्थर के रहस्य से पर्दा उठाने के लिए कई प्रकार के शोध हुए हैं, लेकिन फिर भी इस पत्थर के संबंध में पूर्ण जानकारी उपलब्ध नहीं हुई है। सिर्फ किस्से-कहानियों तक ही इस पत्थर का वजूद है। यहां पढ़िए पारस पत्थर से जुड़ी एक कहानी... निर्धनता से तंग आकर किसी गरीब ब्राह्मण ने भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए कठोर व्रत किया। शंकरजी ने उसे स्वप्न में दर्शन देकर कहा, ‘वृंदावन में सनातन गोस्वामी के पास जाकर उनसे पारस पत्थर मांगो, उससे तुम्हारी निर्धनता दूर हो जाएगी।’ जब वह सनातन गो...

सम्मोहन से जाने अमुक व्यक्ति के मन की बात (Hypnotizm se jane dusro ki man ki baat)

सम्मोहन, वशीकरण जैसे शब्दों को सुनकर किसी जादु की अनुभूति करते हैं। सम्मोहन एक विद्या है। जिसे जागृत करना सामान्यत: आज के मानव के अति दुष्कर कार्य है। सम्मोहन विद्या का इतिहास आज या सौ-दो सौ साल पुराना नहीं बल्कि सम्मोहन प्राचीन काल से चला रहा है। श्रीराम और श्रीकृष्ण में सम्मोहन की विद्या जन्म से ही थी। वे जिसे देख लेते या कोई उन्हें देख लेता वह बस उनकी माया में खो जाता था। यहां हम बात करेंगे श्रीकृष्ण के सम्मोहन की। श्रीकृष्ण का एक नाम मोहन भी है। मोहन अर्थात सभी को मोहने वाला। श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व और सुंदरता सभी का मन मोह लिया करती है। जिन श्रीकृष्ण की प्रतिमाएं इतनी सुंदर है वे खुद कितने सुंदर होंगे। श्रीकृष्ण ने अपने जीवन में सम्मोहन की कई लीलाएं की हैं। उनकी मधुर मुस्कान और सुंदर रूप को देखकर गोकुल की गोपियां अपने आप को रोक नहीं पाती थी और उनके मोहवश सब कुछ भुलकर बस उनका संग पाने को लालायित हो जाती थी। श्रीकृष्ण ने माता यशोदा को भी अपने मुंह में पुरा ब्रह्मांड दिखाकर उस पल को उनकी याददाश्त से भुला दिया बस यही है सम्मोहन। श्रीकृष्ण जिसे जो दिखाना, समझाना और ...